कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के लिए सरकार पुरे देश में लॉक डाउन का फैसला लिया। पूरा देश सरकार की इस फैसले का सम्मान किया। इस लॉक डाउन के कारन लाखों की संख्या में प्रवासी मजदुर जो अपना घर बार छोड़कर एक सपना लिए गए थे आज वही मजदुर अपने सपनो को कुचल कर घर वापसी के लिए मजबूर है। क्यों ?
मैं सरकार या किसी पॉलिटिकल पार्टी को दोषी नहीं मानता। लेकिन आप सिस्टम से जरूर पूछ सकते है?
एक घटना की मै जिक्र करना चाहूँगा जिसमे कुछ प्रवाशी मजदुर जिनका केवल ये सोचना गुनाह था कि भूखे मरने से बेहतर है अपने घर पैदल ही निकल जाना । ये उस आस में निकल गए की हम घर पहुंच जायेगे और कम से कम भूखे नहीं मरेंगे। पर क्या पता उन मासूमो को जिंदगी ऐसे छीन लेगी जैसे आगे से परोसा हुआ थाल। क्या पता उनकी आस में कितनी जिंदगी चल रही थी। उनको घर पहुंचाने के लिए हमारे सिस्टम के पास कोई साधन नहीं था लेक़िन उनकी मांस की बोटिया चुनने केलिए पूरा सिस्टम ही पँहुच गया। जी हाँ, हम बात कर रहे है महाराष्ट्र के औरंगाबाद की ट्रैन हादसे की।
वो गांव इसलिए भाग रहे थे कि उन्हें भरोसा था की गांव उसे भूखा मरने नहीं देगा। गांव में गरीबी है लेकिन भुखमरी नहीं। शहर आवश्यकता नहीं सपने पूरा करता है।
आज वो मजदूर अपने सपने लिए हमेशा के लिए सो गए।
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BY: AMANDEEP
THANK YOU
मैं सरकार या किसी पॉलिटिकल पार्टी को दोषी नहीं मानता। लेकिन आप सिस्टम से जरूर पूछ सकते है?
एक घटना की मै जिक्र करना चाहूँगा जिसमे कुछ प्रवाशी मजदुर जिनका केवल ये सोचना गुनाह था कि भूखे मरने से बेहतर है अपने घर पैदल ही निकल जाना । ये उस आस में निकल गए की हम घर पहुंच जायेगे और कम से कम भूखे नहीं मरेंगे। पर क्या पता उन मासूमो को जिंदगी ऐसे छीन लेगी जैसे आगे से परोसा हुआ थाल। क्या पता उनकी आस में कितनी जिंदगी चल रही थी। उनको घर पहुंचाने के लिए हमारे सिस्टम के पास कोई साधन नहीं था लेक़िन उनकी मांस की बोटिया चुनने केलिए पूरा सिस्टम ही पँहुच गया। जी हाँ, हम बात कर रहे है महाराष्ट्र के औरंगाबाद की ट्रैन हादसे की।
वो गांव इसलिए भाग रहे थे कि उन्हें भरोसा था की गांव उसे भूखा मरने नहीं देगा। गांव में गरीबी है लेकिन भुखमरी नहीं। शहर आवश्यकता नहीं सपने पूरा करता है।
आज वो मजदूर अपने सपने लिए हमेशा के लिए सो गए।
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